भारतीय संस्कृति का रसपान कराने वाले
ग्रन्थों में रामायण का विशेष स्थान है | रामायण के प्राण अटके हैं सीता में और
सीता की अल्हड़ता,सौम्यता और नए - नए रूप की झलकें
‘सीतायाना’ में | सीतायन की यह विशेषता है कि स्त्री की प्रमुखता लिए हुए है | सियाराम’ या ‘सीताराम’
के अतिरिक्त सीता का ध्यान आते ही अशोक वाटिका में बैठी सीता का ध्यान आ जाता है किंतु श्रीमती
उर्मिला किशोर द्वारा रचित सीतायन में सीता के नए अनोखे रूप के दर्शन होते हैं |
सीता आजीवन आत्मसम्मान और धर्य की कसौटी पर कसती रहीं| जीवन के अंतिम क्षण
तक दुखों की बदरी बन बरसती रही | एक मिथक यह भी है कि कोई अपनी बेटी का नाम ‘सीता’
रखने में सकुचाता है किंतु उर्मिला किशोर द्वारा रचित ‘सीतायन’ में सीता का नया और
सशक्त रूप सामने आया है | रामायण आधारित
होने पर भी ‘सीतायन’ की अपनी महत्ता है जिसमें स्त्री पक्षीय भावों का पुरजोर
समर्थन किया गया है | इसमें सीता की केवल सहनशील छवि ही नहीं है अपितु एक ऐसा रूप
है जो समाज को या यूँ कहें कि बेटी / स्त्री विरोधी समाज को गतिशीलता प्रदान करता है | उसे जागरूक करता है | वह शिक्षिका है, कुशल
गृहणी है, समाज सुधारिका है और भी कई रूप लिए हैं |
सीतायन’ की ध्वनि चौंकाने वाली है ‘रामायण’ के
स्थान पर यह शब्द कोमलता आकर्षण और कौतूहल मिश्रित अर्थ से पूर्ण है | आदि कवि
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण सभी रामायणों का आधार है | सभी में श्री राम
का जन्मोत्सव उनकी बाल लीलाओं तथा लड़कपन का सुंदर तथा विस्तृत चित्रण मिलता है | ‘सीतायन’
में सीता का जन्म-महोत्सव, नामकरण, अन्नप्राशन सभी संस्कारों का मनोहारी चित्रण
हुआ है |” यह उस प्रथा पर सीधा प्रहार है जो केवल वंश दीपक अर्थात पुत्र तक ही
सीमित है | बाल्यकाल से लेकर वनवास में सीता का नया रूप सीता हरण, अयोध्या आवागमन, एक आदर्श नारी, बहन
पत्नी, बहू,और कुशल गृहणी के रूप में विद्यमान है | मूलतः रामायण आधारित होते हुए
भी सीतायन अपना विशिष्ठ स्थान रखता है | यह रसीले आम की तरह रसास्वाद कराता है साथ
ही इसकी चित्रात्मक शैली मंत्रमुग्ध कर देती है |
इक्कीस सर्गों में प्रथम सर्ग ‘ऋषि कुल’ में प्रकृति का मनमोहक चित्रण किया गया है| मानो प्रकृति अपना
सारा दुलार उड़ेलने को लालायित है |
‘सीतायन’ श्रीमती उर्मिला किशोर जी की अद्भुत
अनभूति का प्रमाण है | सीता में कोमलांगी नारी की गरिमा पातिव्रत धर्म का एक उदाहरण
देखा गया है | यहाँ ‘सीतायन’ में धरती की पुत्री अर्थात “पृथ्वी के समान विस्तृत
यशवाली कृषि की अधिष्ठात्री देवी हरी-भरी, सर्वत्र मंगल कल्याणकारी सीरध्वज जनक
नंदिनी जानकी – बह्रमज्ञानी की पुत्री सीता, राम की पराशक्ति सीता इन स्वरूपों के
अतिरिक्त अनेक रूपों वाली सीता है |” सीता गुणों की खान है | सीता शक्ति स्वरूपिणी
है| स्वयं प्रकृति स्वरूप है | इसलिए सीता के प्रकट होते ही चारों ओर सुख समृद्धि छा
गई ---
“ छू
इसके पावन चरणों को, मंगलमय होगी वसुंधरा,
अतुलित धन- धान्य प्रकट होगा, इस ईति भीति से रहित धरा को |
हो शस्यश्यामला धरती यह, फल,फूल,धान्य, जल विपुल रहे,
कन्या साक्षात् प्रकट लक्ष्मी , इससे समृद्धि श्री बहुत रहे |” (18)
रचनाकार ने लड़की जन्म पर रुदन मचानेवालों या फिर कन्या
भ्रूण हत्यारों को बताना चाहा है कि लड़की बोझ नहीं है | उसका आवागमन ही खुशियों का
खजाना है |कन्या के जन्मोत्सव पर भोज का आयोजन स्त्री के प्रति सम्मान की भावना को
प्रेषित करता है | “नव शिशु की मुस्कान, सब जन में बसी,
कन्या सुखद महान, सुख-समृद्धि
रच रच रची |”
‘सीतायन’ में सीता के जन्मोत्सव पर चारों ओर उल्लास
पुष्पित होता है --
शंखध्वनिगूंज
उठी पुर में, फिर बजती मीठी शहनाई,
था
गीत मधुर सब अधरों प, कन्या आई ,देवी आयी| (16 )
यह
पुस्तक नई चेतना से लिए हुए है | शिक्षित लड़की सारे परिवार को शिक्षित
करदेती है इसमें संदेह नहीं ...
“पाँच
वर्ष बीते पलक्ष्ण सम, सुख सरिता बहते,
पढ़ने
योग्य हो गई सीता, देखो मुनि क्या कहते!
लड़की
का पढ़ना आवश्यक, वह कल की नारी है,
घ्यांवती
विदुषी नारी इस, जग की निधि प्यारी है |(25)
सीतायन में इक्कीस सर्ग हैं | ३२४ पृष्ठों पर
सीता का हर गुण अंकित है | यह सीता आधारित सम्पूर्ण आख्यान है | साथ ही चारों
बहनों का भी सुन्दर चित्रण हुआ है उनकी अपनी निराली विशेषता थी ....
“चारों बेटी नाट्य मंडली सी, बैठी आँगन में,
वीणा लेकर गाती उर्मिल ,सीता स्वर ताली में|
ले मृदंग मांडवी झूमती , रुनझुन ध्वनि पायल में,
नाच रही श्रुतिकीर्ति ताल पर, हर्ष प्रकट घुंघरू में|” (13)
सावधानी ही सुरक्षा का आधार है | यहाँ सीता को
अपनी सुरक्षा के लिए शस्त्र धारण करने की सलाह देकर यह निश्चित किया गया है कि
स्त्री को आत्मरक्षा में हथियार उठाने में भी संकोच नहीं करना चाहिए |
चारों बहनें कला के साथ रण कौशल का भी प्रशिक्षण
ले रही थी इससे स्पष्ट होता है कि स्त्री आत्मसुरक्षा के लिए तलवार उठाने में
सामर्थ्य हो ....
“ सीख रही थीं गायन-वादन, सीख रहीं रण- कौशल,
समय पड़े पर उठा सकें असि, खर कृपाण कर कोमल |
चन्द्रकला सम बढ़ती जातीं, चरों चन्द्रमुखी थीं,
विद्या, गुण संपन्न सुशोभित,सरस्वती, लक्ष्मी थीं | (२9)
यहाँ
उन मूल्यों को भी रेखांकित किया गया है जो समाज की नींव होते हैं और यह भावी
माताओं को सीख भी है कि
“माँ ने जैसे बीजबो दिए, लघु
बालक के मन में,
वैसा ही तरु बन वह वैसा फल देता जीवन में |
माँ का कितना बड़ा हाथ है,
संतति के सुख-दुःख में?
माँ की शिक्षा, संस्कार आवश्यक है इस जग में |(26)
बाबा तुलसी ने भी सीता को कोमलांगी दिखाया है रामचरितमानस
में कौशल्या कहतीं है कि सीता चित्र में
जानवरों को देख सहम जाती है वह प्रत्यक्ष कैसे देख पाएगी ? पर यहाँ सीता कहती है ....
“ प्रकृति का यह रूप ऐसा, कभी पहले नहीं देखा,
राजमहलों में कहाँ यह, सहज अद्भुत चित्ररेखा?
वनगमन
प्रारम्भ अपना , यहाँ कितना मनोहर,
दिव्य है,अति भव्य है यह, रम्य है
स्वर्गिक,सुखाकर |” (141)
यहाँ सीता के माथे पर पसीने की बूंदे नहीं छलकी
ना ही वह थकी और ना ही पूछा कि वन कितना दूर है ....? वर्तमान युग अशांत और आतंक
के साये में झुलस रहा है| इस पाशविक प्रवृति का नाश होना है | यह भाव जनक की चिंता
सर्ग में देखने को मिलता है ....
“ है
शांति सदा ही सुखदायी, क्यों शांत नहीं रहते हैं वे?
हम जिएँ और जीने भी दें, सिद्धांत नहीं समझे
हैं वे|” (35)
सीतायन
में सीता एक शिक्षिका के रूप में दिखाई देती हैं जिसका उद्देश्य है योग, शिक्षा और
पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़े |
“निर्विकार
चिंतन की धारा, लाए सुख-समृद्धि तब,
नित्य
लगाएँ यौगिक आसन, प्राणायाम करें तब |” (78)
वनवासियों को नया जीवन दिया जीवन जीने की कला
सिखाई ...
“दिया बहुत कुछ दान, सिखाया उन्हें स्वच्छ रहना,
दिया नेह नव दान सिखाया, मधुर भाव से रहना|
कहा
राम ने, “इनके हित विद्यालय यहाँ बनेगा,
चतुर,कौशल
शिक्षक के द्वारा , जन-उत्थान बढ़ेगा|” (83)
सीता केवल राम पत्नी नहीं थी वह एक कुशल शिक्षिका भी थीं जो समाज को नई दिशा
देती है ....
“कुटी
निकट वन-कन्याओं का बार बार आना ,
सीता
का तब हृदय उमड़ता,पास बुलाती उनकों ,
खेल
-खेल में छोटा सा पाठ पढ़ातीं उनको |
यहाँ यह भी स्पष्ट होता है कि कन्या शिक्षा, तथा खेल द्वारा शिक्षा बहुत
महत्वपूर्ण है तथा यही मूल्यपरक शिक्षा का स्वरूप है | इससे भी वर्तमान सन्दर्भ
में सीतायन की प्रासंगिकता परिलक्षित होती है ...
लोपामुद्रा और सीता मिलन का उद्देश्य वन विचरण तथा वन रमण है |
लोपामुद्रा ने सीता को अपनी पाठशाला दिखाई जिसमें वनचरों की बहू बेटियों का शिक्षा
लेना , करघा चलाना और औषधि बनाना यह सब आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया जा रहा है |
“सीतायन’ में यह मौलिक संदेश है |
पर्यावरण के प्रति संदेश देखिए ....
“सीता
अपना जन्मदिवस, वन में जाकर करती थीं,
ऋषि
–मिनियों की सुख- सुविधा के कार्य वहाँ करती थीं |” (83)
सीतायन की सीता के विविध रूप हैं | एक तरफ वह सीता
हरण की जड़ अर्थात शूर्पणखा के बर्ताव से
भयभीत होती है फिर भी एक स्त्री के मन को स्त्री टटोलती है यह सम्वेदनशीलता का
अच्छा उदाहरण है |उनका मन द्रवित हो जाता है .....
“बोलीं वे,”दंडित किया, हाय! क्यों इसको,
विक्षिप्त,वासना
से मारी नारी को |
यह
काम,क्रोध,ईर्ष्या से अतिशय पीड़ित,
बेचारी
जाने उचित न जाने अनुचित |” (204)
यह भाव सीतायन की स्त्री पक्षीय भावना को उजागर करता है
|
सीता सृजन है, वह जीवन की कला है फिर युद्ध की
विभीषिकाओं को कैसे उचित ठहरा सकती है | यद्ध की भयावहता और उससे होने वाली क्षति
का ध्यान करके विचलित हो उठती है ....
“ एक व्यक्ति का हठ,लाखों के, प्राण,आह!
ले लेगा,
माँगों का सिंदूर लूटेगा, माँ का उर रोएगा|
महानाश की होली होगी, धक - धक ज्वाल
जलेगा,
महाकाल के तांडव से,कैसे यह लोक बचेगा ?” (248)
‘अग्नि परीक्षा’ का नाम सुनते ही सीता का
स्वाभिमान जाग उठता है | वह स्त्री पर हो रहे अत्याचारों का सशक्त विरोध करती है
तथा इसमें स्त्री को दोषी ठहराने वालों पर कुठाराघात करती हुई दृढ़तापूर्वक श्रीराम से प्रश्न करती है ...
हे राम परम प्रिय! क्यों ऐसा कहते हो?
हा! सभा मध्य अपमान आज करते हो |
अब तनिक बात पर त्याग रहे हो मुझको,
क्या उचित यही तुम जैसे पुरुषोत्तम
को?
सीता ने पुरुष की करनी का फल स्त्री को भोगने की
विवशता पर उत्तर माँगा है ...
“पर पुरुष विवश अबला को यदि छूता है,
वह दोष उस पुरुष का ही तो होता है |
वह अबला पतिता क्यों मानी जाती है|
कुछ न्याय नहीं है इस जग में हे रघुवर !
अन्याय पुरुष का कितना है यह बढ़ कर
?”(292)
एक और उपेक्षित स्त्री पात्र और अपनी बहन ‘उर्मिला’
की विरह वेदना को सीता ने समझा | यह है सीता का बहनापा जो ‘पर पीड़ा’ को ‘स्व पीड़ा’
समझती है .....
“ मिली जानकी ऊर्मिल से तब दशा देख अकुलायी,
सचमुच ही यह ऊर्मिल है क्या ? या उसकी परछाई !
“बहुत कष्ट सहा ऊर्मिले! तूने घर में रहकर,
सबसे याद तेरी आई उस वन जीवन
में,
चकवा चकवी सम बिछुड़े तुम
लम्बी अवधि- निशा में|
सीता
सेवा की प्रतिमूर्ति है | सीता नारी की गरिमा का नाम है जो शुभ आदर्शों और उदात्त
भावों से गृहणीय है | वह कुशल पत्नी, बहू ,माँ,
बहन ,गुरु तथा कुशल गृहणी अर्थात आदर्श का श्रेष्ठ उदाहरण है | ..
“थी प्रसिद्ध सीता की वह, सरस्वती, रसोई पुर
में,
सब गृहणी प्रयत्न करतीं, अनुकरण करें वे घर
में|
वृद्धा
सासें कैसे रहतीं. ध्यान सिया रखती थीं,
उनकी
सेवा में तत्पर हो, उनका मन हारती थीं|
अंततः रचनाकार ऊर्मिला का यह कहना सार्थक है कि ..
सीता
सुयश अपार, नारी गरिमा रूप है|
शुभ
आदर्श उदात्त, सर्वभाव गृहणीय है |”
सीतायन पुरानी परंपराओं की नई व्याख्या का करता
है यही इसकी मौलिकता है 324 पृष्ठों में समाहित सुन्दर सारगर्भित काव्य है | सीतायन
को पढ़ते समय एक प्रवाह बना रहता है| पाठक एक सुंदरत तथा रोचक कथा का रसास्वादन करता
है |
शब्द चयन पूरी कथा को बलवती करता है | निसंदेह यह
रचना अद्भुत है | वर्तमान समाज में यह प्रासंगिक प्रमाणित होती है | इसका संदेश विचारणीय
करणीय है |